एक शहर था

एक शहर था, जहाँ ओस्मानिया यूनिवर्सिटी के सामने खूब शान्ति हुआ करती थी; आज वही सड़क पर गाड़ियों और बसों की आवाजाही से बहुत प्रदूषण और शोर के अलावा और कुछ नहीं होता। कभी देखने को मिलता थी हरियाली की एक घनी चादर; आज ऊंचे-ऊंचे मकानों की एक लम्बी,ना ख़त्म होती कतार ही दिखती है। एक अजीब सी परत ढके हुए इस शहर को, जिसको कुरेदने पर एक और ही सूरत नज़र आती है आज। ज़्यादा घूमता फिरता नहीं हो, फिर भी एक अजीब सी थकावट हो जाती है इस शहर में। बहुत सारी गुथ्थियाँ है इस शहर को बांधे हुए, हाथ पकड़े हुए है इस शहर की नब्ज़ पर। क्या जाने, क्या है इस शहर की फ़िज़ा में; बस, एक शहर था।

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