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मैं आदमी हूँ

मैं आदमी हूँ, और अक्सर मैं बदनाम ही होता जाता हूँ, हर किसी की खुशी, अपनी कुचलकर हर दिन परोसता जाता हूँ। मेरी चुप्पी में छुपी है टीस, मुस्कान से ढकता जाता हूँ, बस आदर की भूख नहीं मिटती, इसलिये बदनाम हो जाता हूँ। कहीं पिता की रात की लोरी और कहीं पति के प्रेम  सुनाता हूँ, कहीं बेटे का कर्तव्य और कहीं मित्र का भाग निभाता हूँ। मेरे अंतिम श्वास की घड़ी में बस मैं इतना ही कह पाता हूँ, बस आदर की भूख नहीं मिटती, इसलिये बदनाम हो जाता हूँ। कभी दफ्तर के तनाव से तो कभी दुःख से जूझता जाता हूँ, जीवन की आपाधापी में अक्सर पीछे रह जाता हूँ। मेरे जीवन का कोई मोल जो था, उसे गिरवी रखता जाता हूँ, बस आदर की भूख नहीं मिटती, इसलिये बदनाम हो जाता हूँ। औरों की खुशी में अपनी खुशी, बस यही बात दोहराता हूँ, अपना क्या और पराया क्या, सब कुछ ही छोड़ता जाता हूँ। बन इस समाज की धरा की ईंट, एक उज्ज्वल कल को सजाता हूँ, बस आदर की भूख नहीं मिटती, इसलिये बदनाम हो जाता हूँ। कभी सोचता हूँ के मेरे जीवन का सार था ही क्या? एक क्षण सुख की छाँव, और शेष धूप में बिताता हूँ। कोई चला जाता है अनदेखा कर, तो कोई धिक्कार जाता है, बस आदर की भ

Shankaracharya

In the midst of a sea of the strangers He stands Alone, unmoved, silent, all alone There is none that recognizes Him, or Knows Who He is Those who do, loathe him more and more And yet, He is Real, the One that marks this land His presence the glimmer of long lost hope The flag above him, flutters silently in the breeze Giving a sense that change will resume once more It was a nightmare that happened many moons back That seems to have no end in sight to it And yet, His presence there, His presence elsewhere Makes one wonder, has the movie ended, or is there more? It was a dark, desperate moment when his dearest fled And yet, He decided to sit this one out yet again For it wasn't the first, but was hopefully the last And his dearest would return to their homes once more Many a harrowing times did He viewed from atop Many a times He had to see bodies float ashore And yet, while they damaged His Body, His Shrine They could not damage that Spirit, That Soul That Soul that resided in eve

Maelstrom

 And it sets in again This dark creepy feeling That makes me extremely uncomfortable I try and try and try Getting out of this maelstrom This metaphorical sinking Ain't coming to an end any time soon though It's difficult to keep up daily With pretences and facades  Of emotions that are fake through and through And yet, it can't hide that seeking That feeling  Of an inexplicable drowning That the mind witnesses everyday It's a strong current Swimming against it is lethal And yet I'm moving my hands and feet Trying to walk in its depths When there's no hope of even a breath of air Every day is that feeling Tell me, stranger who shares these waters What do you think about my situation? We stand and await the water Filling up our lungs slowly and painfully While our body bloats Of this dreariness that kills me Do you have an inkling? Your silence is answer enough To me, as I stand quietly Waiting for things to happen Hoping for a miracle rather naively For they don

तिरस्कार की माला

 प्रत्येक पल में तिरस्कार छिपा है कुछ भाग्यशाली ही इसके भोगी होते है जीवन यातनाओं के माला पिरोता है जो इनके कण्ठ की शोभा बनते हैं मैं भी संभवतः इसी श्रेणी का हूँ और इस जीवन सत्य से परिचित हूँ ये वेदनाओं के आभूषण मेरे लिए बना काल के द्वारपाल मुझे आकर्षित करते हैं बस टकटकी बाँध बैठा हूँ किवाड़ पे सोचता हूँ, जब स्थितियाँ वश में होती हैं उचित समय पर कर सबसे विछोड़ा हम भी तेरे कटरे की ओर चल देते हैं हाँ, ये कटरा इस आयाम से परे है यह बात सोचता हूँ सब को बता चलते हैं के कल, गलती से किसी विचार में जो मैं दिखूँ तो जान लेना, के हम एक भ्रांति बन रह गए हैं

पद्मावती

तेरे शौर्य की है ऐसी गाथा तेरे सौंदर्य पर वो भारी पड़ी तेरी चिता की राख की गर्माहट ज्वाला से भी बहुत अधिक रही करें कोटि प्रयत्न चंद तुच्छ मनुष्य तेरी छवि को आज मिटाने की पद्मावती, तू बस एक रानी नहीं जीवन पर्यन्त तू अमर हुई। तेरे हुकम रावल रतन की आँख का तारा केवल तू नहीं रही तू दूर आकाश में ध्रुव तारे सी जग में यूँ तू ज्ञात हुई तेरी वीरता से ख़िलजी थर्राया तू वीरांगना श्रेष्ठ कुछ यूँ हुई तू बस एक सुंदर रानी नहीं मेवाड़ का अनमोल इक रतन हुई। वो छल पारंगत क्रूर आक्रांता जिससे बन लोहा तू भिड़ ही गई तेरे प्राप्ति के हर संभव प्रयास को तू आँधी बन छिन्बिन करती रही तू बन चरित्र परिभाषा नई हर पथ को प्रतिष्ठित करती चली तू बन सिंहनी कर चली जौहड़ बनी आत्मसम्मान की नई गिरि मरुथल में खिलते नहीं हैं पुष्प तू बात असत्य कुछ यूँ कर गई इतिहास स्वयं साक्षी था वहाँ स्वयं धर्म बना तेरा अनुयायी तेरी स्मृति महक रही आज भी है तू भारत की ऐसी वीर हुई। पद्मावती, तू बस एक रानी नहीं जीवन पर्यन्त तू अमर हुई।

Raat ki Razai

ऐ माई आज मेरे लिए एक रज़ाई तुम बुन देना सौ ग्राम रुई डालना सपनों की सौ ग्राम उस में अंगड़ाई भरना चंद धागे भी बुनना तुम प्रेम की मीठी यादों के ताना बाना जो उस में मिली हो तारों की झलकें चंद दुखड़े भी डालना तुम और रंगना मेरे आसुंओ से कोनों की टाँकें जो लगाओ तो पिरोना सुआ मेरे केसुओं से  ये आने वाली रुत बड़ी लम्बी रात लाएगा अतीत के पन्ने फाड़ कर ये मुझे सुनाने आएगा वो किस्से सुन मैं सो जाऊँ बस यही आस उठे मन में तन ढक जग से मैं छुप जाऊँ जब रात पहर मुझ से गुज़रे ऐ माई आज मेरे लिए एक रज़ाई तुम बुन देना सौ ग्राम रुई डालना सपनों की सौ ग्राम उस में अंगड़ाई भरना

एक नदी थी बेतवा

एक नदी थी बेतवा एक शहर था ओरछा समय ने जिन्हें आँचल में ढांप लिया और ढांप के जिन्हें वो भूल गया हरबोलों चन्देलों की वीरभूमि पतझड़ जंगलों के बीच कहीं गुम गयी राम भूमि जिससे याद है वो इतिहास पर इस भाग्य का फेर देख लेता बस एक आस खजूरों की नगरी खजुराहो जहां कर्णावती नदी धीमे धीमे चलती है  सैलानी यहाँ दीखते अनेकों मंदिरों की वासना मई मूर्तिकारी देखते सभी भूल गए सब चंदेलों को           

पल

यूं चुप चुप तुम मुझको देखते रहे मैं खामोश तुम्हे बस तकता रहा सन्नाटे के आगोश में यूं ही वक़्त बीतता रहा सवाल कई पर जवाब एक ही दिल में जो और ज़हन में भी तिनके जितना छोटा ये पल लगे इक अरसा बीतता रहा     

I Got Left Behind

And while I stood waiting, the world walked past me And I got left behind While everyone ran around and chased their dreams My dreams got blurred in my own teary eyes While I kept looking around me, trying to make sense of my life The world moved away, its giant strides crushing, unkind And I looked across, straining my neck To see what was left of the world's grind It was a lonesome scene, standing alone While the world walked past me, leaving me behind

Alahda

हर्फ़ ब हर्फ़ किस्सा लिखा था जो तुमने मैं आज उसे मिटाने आया हूँ तसव्वुफ़ के दरीचों में जो बसर किया था तुमने मैं आज उससे अलहदा करने आया हूँ ताउम्र साथ चलने का वादा जो किया था तुमने उसकी रेशमी डोर को आज मैं तोड़ने आया हूँ मेरी बातें मेरे किस्से मेरी यादें जो चुराईं थीं तुमने मैं उसका सर्मायी चुकता करने आया हूँ जो अंदाज़े बयाँ से कायल किया था तुमने वो अलफ़ाज़ तुम्हें आज लौटाने आया हूँ तुम्हारा वजूद मेरे लिए मायने नहीं रखता अब बस इतना ज़हन कराने तेरे शहर आया हूँ  

Pehchaan

आज  मन दर्पण में जो झाँका तो पाया के मेरी पहचान धुंधली हो चली है वो धुंधली आकृति कहीं प्रतिबिम्ब के कोने में उदास दुखी बैठी है  न जाने क्यों ऐसा है के वो कुछ बोलती ही नहीं है बस टकटकी लगाए द्वार की ओर देखती रहती है  न जाने किसकी प्रतीक्षा है मेरी पहचान को शायद मेरे अस्तित्व की    

Safar

चलते चलते जो आवाज़ लगाई मेरे माज़ी, मेरी तन्हाई ने  मुड़कर देखा तोह पाया के मील के पत्थर पर दोनों आराम पसर कर रहे थे  हैरां परेशां सा हुआ मैं, पुछा मैंने "क्यों पीछा कर रहे हो?" तन्हाई हंसकर बोली "मुझसे दामन कैसे छुडाओगे?" "तन्हाई तो सखी थी मेरी, पर अब नहीं" कहा मैंने  "जो साथ न चाहूँ तोह क्यों संग चलती हो?" माज़ी ने मेरे मुस्कुराकर कहा मुझसे "मैं तुम्हारा ही माज़ी हूँ, तन्हाई की रूह हूँ जो मुझसे दामन न छुड़ा सको तो तन्हाई से क्या पीछा छुडाओगे?" "है तू मेरा माज़ी, मगर मेरे दिल में तेरे लिए नहीं है कोई जगह नहीं चाहता काँटों का बिछौना  नहीं चाहता आँसूं भरी रात" बस इतना कहा और मैं चलता बना कुछ दिनों बाद खबर आई थी मेरा माज़ी और मेरी तन्हाई वहीँ खड़े हैं  वहीँ, उस मील के पत्थर पर, इंतज़ार कर रहे हैं यादों के उसी रास्ते पर मेरे लौटने की