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Showing posts from June, 2020

Slicing Through the Chinese High-Tech Economy Propaganda

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(Courtesy: India TV) The Indian government’s decision to put 59 applications originating from the People’s Republic of China (PRC) has literally sliced through the Chinese economic propaganda of ‘interdependence and harmony’ that the Chinese Communist Party (CCP) and its propaganda arms, especially Global Times has been boasting about since the soldiers’ clash in the Galwan valley. This hits the Chinese where it hurts them the most, since these application developers and software companies represent the high-end Chinese software and hardware prowess that was being used to project CCP’s soft power push of an advanced hi-tech society, an alternative to the democratic virtues and ideals that mean so much to countries like India. One must bear in mind that this step has not come out in isolation. Concerns about Chinese apps have been doing the rounds for months on a stretch now, with politicos and people alike raising questions on privacy concerns arising from them. Policy experts have not

Perhaps There is a Shekhar in All of Us

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Sushant Singh's death has left a void in many people hearts. Even those who vaguely knew him in a personal level feel the loss of Sushant as someone very personal today. As someone whose brilliance could have taken him anywhere to great heights, he had a zeal, a passion for art, and wanted to touch new heights, inspired by the greats of cinema in India and abroad. He did whatever it took to reach the pinnacles of success, only to be denied a seat at the high table by the hoi polloi of a film industry that never really welcomed him, that wanted to have nothing to do with a misfit like him.  However, what people have perhaps thankfully gotten to talk about since the incident is nepotism. Nepotism is everywhere. Publishing, cinema, politics, work - you name it, it's there. The pretensions of nepotism's non existence is a charade that has gone on for too long, and perhaps has been mocked at more often than not. The truth is that we don't mind nepotism in India as a rule. &q

सुखोचक - 3

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"एक बात का ध्यान रखना है सभी को। कोई भी बहु बेटी इन मुसलमानों के हाथ जीवित न लगे। अगर हो सके तो पिता उन्हें स्वयं मार दें, भाई अपने हाथों से उनका गला घोंट दे - हमारी लाज को इस तरह हम कतई न हारेंगे, जीते या मरते। जो बाप या भाई न कर सके, तो बेटियां बहुएं अपने आप किसी कुएं में कूद कर जान दे दें, या चाक़ू से अपने आप को रेत कर या घोंप कर अपनी लाज की रक्षा करें।" सुखमनी रोने लग पड़ी। नौ साल की इस लड़की को मृत्यु से बहुत भय था, पर उस पगली को कौन समझाता के लाज खोने का, नाक काटने से जो मान का नाश होना था, वो उससे भी बढ़कर था? कई महिलाओं ने अपनी सिसकियाँ दबा लीं, कुछ ने कड़वे घूँट पी कर हामी भरी, और सब जत्थे चल पढ़े। ऐसा ही एक जत्था किशोरी लाल और उसके भाई कन्हैया का था, जिनके साथ सरला और सुखमनी और माँ चाची भी थे। मशाल की रौशनी में गति से चलना थोड़ा कठिन था, और वह भी पीछे की ओर से सुखोचक से निकलना था। हिन्दुओं के इलाके का पलायन पता नहीं कैसे थम सकता था, जब तक के वह जम्मू नहीं पहुँचते, चाहे कोई गाँव ही पहुंचे। शायद शिवजी का आशीर्वाद था, के चुपचाप सारे हिन्दू सुखोचक से निकल सके, और कोई हरकत नहीं

सुखोचक - 2

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कन्हैया के भाई किशोरी लाल ने रेडियो चालू किया था, और वहाँ नेहरू का भाषण चल रहा था देश की स्वतंत्रता की बधाई का । तभी, रेडियो पर भाषण पर्यन्त समाचार आने लगा। विभाजन हो गया था पंजाब का। और उसमें कई हिन्दू बहुल क्षेत्र भी पाकिस्तान में चले गए थे। साथ ही साथ, खून की होली शुरू हो गयी थी, और उसमें भी यह सुनने में आ रहा था के कई क्षेत्र जो जम्मू के निकट थे वो पाकिस्तान का भाग घोषित हुए थे। अचानक, चारों ओर से चीखने चिल्लाने के स्वर आने लगे। तकबीर के नारों के बीच मृत्यु तांडव करने लगी। हिन्दुओं और मुसलमानों के गुटों में मार काट आरम्भ हो गयी थी। किसी को भी नहीं पता था के सुखोचक हिंदुस्तान में सम्मिलित हुआ था या पाकिस्तान में, लेकिन मौत के नंगे नाच के समाचार जब लाहौर और अमृसतर से सुनाई दे रहे थे, और जम्मू तक उसके प्रभाव की तरंगें फैल रही थी, तो असंभव था के यहां शान्ति बानी रहती । किशोरी लाल ने और खबरों में सुना कैसे मीरपुर, कोटली और मुज़फ़्फ़राबाद से भी हिन्दू और सिखों को मौत के घात उतारा जा रहा था। शिवाला थोड़ी ही दूरी पर स्थित था, और उसके चारों ओर हिन्दुओं ने एक सुरक्षा रेखा खींच ली थी। मंदिर की सी

सुखोचक - 1

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सरला और उसकी बहन सुखमनी माँ और बापू के साथ शिवाले में छुपे हुए थे । किवाड़ बंद थे और रौशनी का कोई आता पता भी न था, क्योंकि दिए सब बुझे पड़े थे। और भी परिवार थे उनके संग, जो चुपचाप सांसें होंठों में भींच प्रतीक्षा कर रहे थे दंगाई भीड़ के शांत होने का, थम जाने का। सरला १५ की ही हुई थी, और उसकी बुद्धि में यह समझ नहीं आ रहा था के यह सब क्यों हो रहा था । सुना था पाकिस्तान की घोषणा हुई है, उसने परसों ही यह बात बापू से कुछ चिंताजनक स्वर में सुनी थी, मगर कौन ऐसे दृश्य की कल्पना कर सकता था? सुखोचक जम्मू रियासत से मात्रा कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटा सा गाँव नुमा शहर था। हिन्दू मुस्लिम की जनसंख्या बराबर बराबर होने से कभी कभार तनाव तो रहता था, मगर शिवजी की देन से यह शहर छोटा ही सही अति समृद्ध होता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही व्यापारिओं ने खूब कमाया था जम्मू की राहगीरी से, और उस पैसे का वर्चस्व जमाने की होड़ लगी रहती थी दोनों ही समुदायों में। जहां हिन्दू मंदिर के शिखर ऊँचे करते, वहीँ मुसलमान मस्जिद की गुम्बदों को और बड़ा बनाने का प्रयास करते। पर पिछले कुछ वर्षों से थोड़ा तनाव भी था, क्योंक

Popular Front of India - What is The Organization All About?

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Image Courtesy (DNA) As the Delhi Police filed a chargesheet in the court with respect to the mayhem resulting from the Delhi Violence, the name of the organization Popular Front of India (PFI) has come up once again. Given this context,  I decided to look at the PFI and its history, and found a disturbing picture of Islamist supremacy emerging, with uncomfortable questions on its activities within India, its troublesome origins, and promoting religious bigotry. Troubling Origins of the PFI As per the website of the PFI, the organization came into existence after the merger of the Karnataka Forum for Dignity (KFD) of Karnataka, National Development Front (NDF) of Kerala, and Manitha Neethi Pasarai (MNP) of Tamil Nadu) among other after the a National Convention on Reservation in Higher Education was organized jointly with All India Milli Council at New Delhi on 29th August 2006. Once the leadership of these organizations decided to merge for better coordination among thems