एक नदी थी बेतवा

एक नदी थी बेतवा
एक शहर था ओरछा
समय ने जिन्हें आँचल में ढांप लिया
और ढांप के जिन्हें वो भूल गया
हरबोलों चन्देलों की वीरभूमि
पतझड़ जंगलों के बीच कहीं गुम गयी
राम भूमि जिससे याद है वो इतिहास
पर इस भाग्य का फेर देख लेता बस एक आस
खजूरों की नगरी खजुराहो
जहां कर्णावती नदी धीमे धीमे चलती है 
सैलानी यहाँ दीखते अनेकों
मंदिरों की वासना मई मूर्तिकारी देखते सभी
भूल गए सब चंदेलों को
          

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