दोपहर

सूना कोना
रंगमहल का
धूप का आँचल
रंग सुनहला
गर्म हवा भी चले वहाँ पे
निंदिया तू क्यों आई यहाँ रे

सुस्त दोपहरी
मन ललचाती
अंखियन के
नीर छलकाती
सूरज भी आज यूं गरमाया
गुस्सैल हो आग बरसाया

रंग हरी का
घूँघट ओढ़े
चाल वक़्त की
कुछ बलखाती
धीमे धीमे हौले हौले
दबे पाँव दिन यूँ चल आई

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