Random Thoughts

आज धूप निकले हुए दो  दिन हो गए हैं. अच्छा लगता है , क्योंकि बाहर की हरियाली पूरी तरह निखर के प्रस्तुत होती है। घर पर भी हमें ऐसी ही हरियाली देखने को मिलती थी घर से बहार की ओर देखने पर। घर की तरह ही यहाँ भी मैं पश्चिम की ओर इन हरे भरे वृक्षों को देखता रहता हूँ, लोगों की राह उस सड़क पर ताकता रहता हूँ जो उन् वृक्षों में कहीं ओझल हो गयी है, छुप गयी है।

कल शाम हम समुद्र के किनारे टहलते हुए पहुंचे थे. कल शाम ढलते सूरज के आँचल में हमने चंद लोगों को मछली पकड़ने की ताक में पाया था। एक महिला ने तो शायद मछली पकड़ भी ली थी। हम सब राहगीर खड़े हो ये देख रहे थे के मछली निकाल पाने में वो कामयाब होगी या नहीं। काँटा झुकता रहा ; शायद मछली लड़ रही थी. एकाएक कोई आदमी आगे आया और उसकी मदद करने लगा। उससे लगा के शायद उसके हस्तक्षेप से मछली पकड़ में आ जाएगी। परन्तु मछली शक्तिशाली निकली; वह काँटा तोड़ कर भाग निकली। हम सब चुपचाप इस खेल को देख रहे थे, उम्मीद में थे के शायद उन्हे भी मछली देखने को मिलेगी। तमाशा ख़त्म हुआ, और हम सब राहगीर अपनी अपनी राह पकड़ लौट चले। राह में वही किस्सा चर्चित हुआ, के कैसे मछली काँटा तोड़ भाग गयी।

आज सवेरे हमें गुरुदेव के पत्र  पढने को मिला।  फेसबुक भी अजब माध्यम है ज्ञान बांटने का, किस्से सुनाने का।  कभी किसी इंजिनियर मेहमान के साथ उनके अटपटे किस्सों का लेखा-जोखा बयान किया था गुरुदेव ने।  बस, उसी से उनके एक नन्ही पारी को लिखे खतों की याद हमें आ गयी।  कैसे वो अपनी व्यथा सुना रहे थे, कैसे अपने काज गिना रहे थे उस परी को के वो इतने व्यस्त थे खिड़की से झांकने में के वो उसे  पत्र लिख तक नहीं पाते थे।  बस, उसी तरह आज ये सवेरा आरम्भ हुआ; आज उसी तरह हम भी बहार ताकने में व्यस्त रहे। पवन के झोंकों से लहराते हर एक पत्ते को हमने जाँचा - परखा, और फिर अपनी आखों से ओझल होने दिया।  फिर आकाश के नीलेपन को चाँद लम्हे निहारा, और चल दिए दिन के स्वागत की तय्यारी में जुटने।  

Comments

Popular posts from this blog

The Senseless Obsession with a Uniform Civil Code - Hindus Will be Net Losers

The Kidnapping of Nahida Imtiaz - The incident that caused a spike in terrorist kidnappings in Kashmir

The People Left Behind in Assam