वीर रस
नव युग के नव प्रभात में नव पंकज तुमको है खिलना रंग प्रकाश सुगंध भाव संग क्षण भर भी विक्षन्न न होना स्मरण करो उन बलिदानों को शूल छिन्न उन अपमानों को मत भूलो इतिहास की वेला क्या कुछ नहीं है तुमने झेला चक्र चला है आज अनोखा समय द्वार पर पालक देखा सत्य बधिर, मूक कण्ठ धारे चहुँ ओर माया का फेरा शब्द असत्य, चित्र असत्य कण कण में है घोर असत्य अंतःकरण को कर भ्रमित है मिथ्या की पाशों ने जकड़ा अवसर आज, अस्त्र भी साथ कर में थाम तू कर प्रहार मिथ्या के पाशों को काट कर स्वतंत्र तू सत्य को आज हुई पराजय बीते कल में छीनो उससे विजय को आज करके पलटवार पुनः तुम सत्य का दामन थामो आज देखना तुम, इस बलिदान से विजय पताका संग के साथ नित्य संघर्षरत रहो तुम अवसर मिलेगा फिर न आज नव युग के नव प्रभात में नव पंकज तुमको है खिलना रंग प्रकाश सुगंध भाव संग क्षण भर भी विक्षन्न न होना