सुखोचक - 1
सरला और उसकी बहन सुखमनी माँ और बापू के साथ शिवाले में छुपे हुए थे । किवाड़ बंद थे और रौशनी का कोई आता पता भी न था, क्योंकि दिए सब बुझे पड़े थे। और भी परिवार थे उनके संग, जो चुपचाप सांसें होंठों में भींच प्रतीक्षा कर रहे थे दंगाई भीड़ के शांत होने का, थम जाने का। सरला १५ की ही हुई थी, और उसकी बुद्धि में यह समझ नहीं आ रहा था के यह सब क्यों हो रहा था । सुना था पाकिस्तान की घोषणा हुई है, उसने परसों ही यह बात बापू से कुछ चिंताजनक स्वर में सुनी थी, मगर कौन ऐसे दृश्य की कल्पना कर सकता था? सुखोचक जम्मू रियासत से मात्रा कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटा सा गाँव नुमा शहर था। हिन्दू मुस्लिम की जनसंख्या बराबर बराबर होने से कभी कभार तनाव तो रहता था, मगर शिवजी की देन से यह शहर छोटा ही सही अति समृद्ध होता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही व्यापारिओं ने खूब कमाया था जम्मू की राहगीरी से, और उस पैसे का वर्चस्व जमाने की होड़ लगी रहती थी दोनों ही समुदायों में। जहां हिन्दू मंदिर के शिखर ऊँचे करते, वहीँ मुसलमान मस्जिद की गुम्बदों को और बड़ा बनाने का प्रयास करते। पर पिछले कुछ वर्षों से थोड़ा तनाव भी था, क्योंक