राम मंदिर निर्णय के समय का भाव
जब राम मंदिर का निर्णय घोषित हुआ था, तब मन में चंद विचार आये थे। उन्हें आज यहाँ छोड़े जा रहा हूँ। ************ आज वह क्षण आ गया, जिसकी प्रतीक्षा लगभग 500 वर्षों से अनेकों लोग, अनेकों गुट, अनेकों भक्तजन कर रहे थे। वह लल्ला, जिनके दर्शन की आस में अनेकों आँखें खुलकर बन्द हो गयीं, आज अश्रुलिप्त हैं यह कल्पना कर के सम्भवतः उनके प्रभु को उनका स्थान, उनका घर अंततः मिल ही जाएगा। आज अनेकों महापुरुषों, जीवित या जीवनपर्यन्त, की तपस्या और त्याग का फल उन्हें प्राप्त हुआ है। उन्होनें सर्वस्व त्याग दिया, उनके जीवन में अनेकों यातनाएं सहीं, क्योंकि उनकी आस्था इस एक स्थान की पवित्रता में हैं। इस आस्था पर अनेकों प्रश्न उठाए जाते हैं। परन्तु क्या मात्र हिंदुओं की आस्था ही प्रश्नों का उत्तर देने के लिए है? पूछा जाता है - मन्दिर क्यों होना चाहिए? ऐतिहासिक तथ्य को नकारने का ठीकड़ा हमारे ही सिर फोड़ना होता है। वैसे ही आस्था क्या है? क्या नास्तिकता और निरीश्वरवाद एक प्रकार की आस्था नहीं है? आप प्रत्यक्ष को नकार दूसरों के सत्य को झुटलाने का प्रयास बन्द करें, तो बहुत बड़ा उपकार होगा इन महात्माओं का। वहाँ