प्रेरनागान
वीर निराश तू कभी न होना युद्ध से विचलित कभी न होना अवगत हो अपने साहस से अंतिम समय बंधे ढांढस से अन्त निकट अभी नहीं तुम्हारा उगा सूरज, हुआ उजियारा जलती चिता में बुझते प्राण काल आहुति मांगे बलिदान किंकर्तव्यविमूढ़ न होना हँसमुख होकर आगे बढ़ना जीवन नाव कर तटस्थ तुम पृथ्वी पे फूलों सा सजना घाव अनेक, पर मृत्यु एक स्मरण रहे यह क्षण प्रत्येक वीरों को शोभा नहीं देता रणभूमि की वेला छोड़ना रथ सवार कर धर्मराज का अंतिम चरण में भागी होना वीर निराश तू कभी न होना युद्ध से विचलित कभी न होना